Why did Nitish Kumar again break the relationship with his ‘elder brother’ Lalu Yadav, what is the inside story
इस रिश्ते को यहां नाम दिया गया है. लालू प्रसाद यादव वर्तमान प्रधान मंत्री नीतीश कुमार के “बड़े भाई” बन गए।
दोनों ने राष्ट्रीय राजनीति में एक साथ शुरुआत की और तब तक साथ रहे जब तक उन्होंने राष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान नहीं बना ली, लेकिन 1970 के दशक में शुरू हुई कहानी 1990 के दशक से बदलनी शुरू हुई।
पहले मैंने अपना हाथ छोड़ा, फिर अपने साथी का। नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी बनाई. लालू यादव ने अपनी पार्टी भी बनाई. दोनों लगभग तीन दशकों से बिहार की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत रहे हैं।
सार्वजनिक मंच से एक दूसरे की खासी आलोचना और एक दूसरे पर भरपूर छींटाकशी करते रहने के बाद भी रिश्तों की पुरानी डोर वक़्त वक़्त पर दोनों साथ लाती रही.
सालों की दूरियों के बाद दोनों साल 2015 में साथ आए. तब लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल और नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइडेट ने मिलकर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा.
2017 में ये गठबंधन टूटा लेकिन एक बार फिर साल 2022 में दोनों की पार्टियां एक साथ आ गईं. रविवार (28 जनवरी) की शाम एक बार फिर ये साथ टूट गया.
नीतीश कुमार ने एक बार फिर बीजेपी का हाथ थाम लिया और रविवार शाम एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली.
मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि जब हर तरफ़ नीतीश कुमार के पाला बदल की चर्चा थी, तब लालू यादव ने उनसे कई बार संपर्क का प्रयास किया. सीनियर नेता शिवानंद तिवारी ने भी दावा किया कि वो भी नीतीश कुमार से बात करना चाहते थे लेकिन कोशिश कामयाब नहीं हुई.
नीतीश कुमार के इस फ़ैसले से राष्ट्रीय जनता दल ही नहीं विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया को भी बड़ा झटका लगा.
इस ‘गठबंधन का आइडिया’ ही नीतीश कुमार लेकर सामने आए थे. उन्होंने ही क्षेत्रीय दलों से बातचीत कर उन्हें साथ लाने की कोशिशें की थीं.
“तेजस्वी का बढ़ता दबदबा और लालू यादव की महत्वाकांक्षाएं” ( “Tejashwi’s growing influence and Lalu Yadav’s ambitions”)
यह पूछे जाने पर कि बिहार में हालिया राजनीतिक घटनाक्रम का इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा, ठाकुर ने कहा कि प्रभाव “इतना बड़ा होगा कि लोग आज तक कल्पना नहीं कर सकते।”
उन्होंने कहा, ”भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्ष्य आज पूरा हो गया है. भाजपा को “भारतीय” गठबंधन से ख़तरा नज़र आया। विपक्ष के मजबूत मोर्चे से मोदी सरकार असहज नजर आने लगी है. इसलिए बीजेपी ने इस गठबंधन को छोड़ दिया. विचार यह था कि नेता को उखाड़ फेंका जाए ताकि गठबंधन ही बिखर जाए। इसमें वह सफल भी रहीं. यह आज भी देखा जा सकता है।”
ठाकुर ने कहा कि बिहार में दो तरह की महत्वाकांक्षाओं के बीच टकराव है.
उन्होंने कहा, ”पहला द्वंद्व यह हुआ कि तेजस्वी यादव की राजनीतिक हैसियत बदलने लगी. इस वजह से उनके पिता लालू यादव को लगता था कि उनका बेटा मुख्यमंत्री बनेगा. वह इसके लिए नीतीश कुमार को माध्यम बनाना चाहते थे.”
वहीं नीतीश कुमार ने लालू यादव और महागठबंधन को आधार पर बनाकर खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने की कोशिश की. ऐसे में इन दोनों महत्वाकांक्षाओं में टकराव होने लगा.
ठाकुर कहते हैं, “नीतीश कुमार कहने भर के लिए कहते रहे कि वो प्रधानमंत्री पद का चेहरा या ‘इंडिया’ गठबंधन का संयोजक नहीं बनना चाहते हैं, लेकिन उनकी पार्टी ने जो प्रयास किए वे सब इसी दिशा में थे. यहां तक की नीतीश ने राज्यसभा में जाने की भी इच्छा जताई थी. उन्हें लगता था कि लालू यादव इसके लिए प्रयास करेंगे और ‘इंडिया’ गठबंधन में उनका नाम आगे बढाएंगे. उन्हें खुद इसकी पहल नहीं करनी पड़ेगी. उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिद्वंदी के रूप में देखा जाने लगेगा. लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिखा और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का दबाव बढ़ने लगा. इससे नीतीश कुमार दोनों तरफ से दबाव में थे.”